कभी कभी हम सोचते है की मैक्या हु, कौन हु, मेरा बजूद क्या है
अगर हम बुरा काम करते है तो हमे बुरा सुनना परता है लोगो से बाते सुन्नी परतीहै सभी हमारी बुराई करते है ये स्वभाबिक है।
परन्तु जब हम किसी की मदद करते है उसके सारा गुनाह अपने सर ले लेते है उसे हर दुःख दर्द से बचाना चाहते है तब वे लोग क्यू हमारी निंदा करते है। तब उनको मेरा कार्य क्यू पसंद नहीं होता है।
आखिर ये सब क्या है इतना होने के बाद भी मन उसकी मदद करने को करता है आखिर ये क्या है।
इन कारणों से मन काफी बिचलित हो उधता है और जी चहटा है की कुछ कर विठू
मेरे समझ में ये नहीं आता है इस कारन से मै परेशां हु और शांति के तलाश में हु क्यू की ये साडी बुरी घटनाये मेरे साथ ही क्यू घटीहै
क्या मेरे में कुछ कमी है क्या मेरा मकशाद नेक नहीं है। ये साडी बाते मै सोचता रहता हु पर इसका कोई जबाब नहीं मिल पता है। मेरे समझ में नहीं आता की मै क्या करू।
इस हालत से मुक्ति हेतु अगर कोई रास्ता है तो ब्लॉग पढने परे हर ज्ञानी लोगो से मेरी बिनती है की कोई
अपनी राइ हमइ दे की मै क्या करू। आखिर कैसे मुझे शांति प्राप्ति होगी।
कोई कृपा करे.
बुधवार, 20 अक्तूबर 2010
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3 टिप्पणियां:
आपने बहुत ही अच्छा लिखा है, पर शब्दों का रंग गहरा होने के कारण, काफी ध्यानपूर्वक पढ़ना पड़ता है, कृपया रंग परिवर्तित करेंगे तो अच्छा रहेगा, आभार ।
amardeep
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